अकेला हूँ मैं
और इस निर्दयी संसार में
अकेले दुकेले इनसान को
अपनी रक्षा हेतु
रखना चाहिए कुछ...
इसलिए साथ रखता हूँ किताब
कही भी रहूँ मैं,
किताब होती है साथ
नहीं पढ़ रहा होता हूँ
तब भी
लेटा होता हूँ उसे सीने पर रखकर
प्रेयसी की तरह
समय असमय,
मुझे अकेला पाकर
धावा बोलती शून्यता के लिए
मैं किताब पर ही धार चढ़ाता हूँ ..तलवार की तरह
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत