मैं क्या क्या
काम करूँ
जीवन के
पल क्षण के
बिखर गए
सब मन के
चिंतामय
याम करूँ
भय ही भय
स्थिर संशय
क्या है भव
का आशय
कहाँ चलूँ
धाम करूँ
(रचना-काल -22-2-62)
मैं क्या क्या
काम करूँ
जीवन के
पल क्षण के
बिखर गए
सब मन के
चिंतामय
याम करूँ
भय ही भय
स्थिर संशय
क्या है भव
का आशय
कहाँ चलूँ
धाम करूँ
(रचना-काल -22-2-62)