मैं चाहे मरुस्थल हो जाऊँ
दूर-दूर तक
झाड़ी न हो
उड़ता कोई
पाखी न हो
पानी का भी
सपना न हो
पर तुम को
अपना क फिर,
आत्मघात का
निश्चय न हो
मैं चाहे मरुस्थल हो जाऊँ
दूर-दूर तक
झाड़ी न हो
उड़ता कोई
पाखी न हो
पानी का भी
सपना न हो
पर तुम को
अपना क फिर,
आत्मघात का
निश्चय न हो