Last modified on 11 अक्टूबर 2017, at 17:17

मैं जानता था / निज़ार क़ब्बानी

मैं जानता था
कि जब हम थे स्टेशन पर
तुम्हें इन्तज़ार था किसी और का,
जानता था मैं कि
भले ही ढो रहा हूँ मैं तुम्हारा सामान
तुम करोगी सफ़र किसी ग़ैर के संग,
पता था मुझे
कि इस्तेमाल करके फेंक दिया जाना है मुझे
उस चीनी पंखे की तरह
जो तुम्हें गरमी से बचाए हुए था ।
पता था यह भी
कि प्रेमपत्र जो मैनें लिखे तुम्हें
वे तुम्हारे घमण्ड को प्रतिबिम्बित करने वाले
आईने से अधिक कुछ नहीं थे ।
००
फिर भी मैं ढोऊँगा
सामान तुम्हारा
और तुम्हारे प्रेमी का भी
क्योंकि नहीं जड़ सकता
तमाचा उस औरत को
जो अपने सफ़ेद पर्स में लिए चलती है
मेरी ज़िन्दगी के सबसे अच्छे दिन ।