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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 11 / नवीन सागर

एक तरफ का मतलब नहीं
हर तरु जाते नहीं बना
अपने पास खड़े रह जाने में
समय गया.

जब कहीं मुझे होना था तब
मुझे हर तरफ चलना था एक साथ
मैं घड़ी में कॉंटे की जगह चला

घर पुराना वीरान
उसी में पीली दीवार पर
अविराम टिक् टिक्! टिक् टिक्!