उड़ा पक्षी
उड़ान से टकराता
गिरा अपनी परछाईयों में जहॉं
वहॉं से आवाज की तरह निकला मैं!
रात भर नींद
एक पेड़ सी दिखती रही दूर
मैं उसकी तरु जाता रहा
अकेला.
जिंदगी अपने भीतर से
बे आवाज निकली
उसी में लौटती हुई.
उड़ा पक्षी
उड़ान से टकराता
गिरा अपनी परछाईयों में जहॉं
वहॉं से आवाज की तरह निकला मैं!
रात भर नींद
एक पेड़ सी दिखती रही दूर
मैं उसकी तरु जाता रहा
अकेला.
जिंदगी अपने भीतर से
बे आवाज निकली
उसी में लौटती हुई.