शाम
अंधेरी सड़क
और मैं मेरे भीतर
मन धब्बे सा मंथर
ऊंचे काले गोल पहाड़ों के नीचे से
जाता रहता
सड़क नहीं पैरों के नीचे
घना अंधेरा लौट रही है
दूर-दूर के दरवाजों से
मेरी दस्तक.
शाम
अंधेरी सड़क
और मैं मेरे भीतर
मन धब्बे सा मंथर
ऊंचे काले गोल पहाड़ों के नीचे से
जाता रहता
सड़क नहीं पैरों के नीचे
घना अंधेरा लौट रही है
दूर-दूर के दरवाजों से
मेरी दस्तक.