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मैं तुम्हें फिर फिर पुकारूँ / त्रिलोचन

मैं तुम्हें फिर फिर पुकारूँ तुम न बोलो


धड़कनों में इस हृदय की

हो तुम्हारा नाम

शून्य नयनों में प्रतीक्षा

प्राणमय आयाम

मैं विजन पथ पर चलूँ

गति में ढलूँ

बंद पाऊँ द्वार उठ कर तुम न खोलो


दुःख के एकान्त में जब

मैं कराहूँ मौन

ध्यान में देखूँ तुम्हीं को

और है ही कौन

यह व्यथा नीरव कहूँ

दृग में बहूँ

इन मलिन धूसर दिनों को तुम न तोलो


(रचना-काल - 18-08-49)