मैं तो नक्सलवादी बन्दे! मैं तो नक्सलवादी रे।
मुझसे तनिक सही ना जाए अब घर की बरबादी रे।
लूटे मेरा देश विदेशी जंगखोर साम्राजी,
साथ-साथ सामन्त रिजाला, पूँजीवाला पाजी,
सबके मन सहकाए, जो बैठे दिल्ली की गद्दी रे।
खट-खट के खलिहान-खेत में, मिल में और खदान में,
मर-मर सब सुख साज सजावे गांव-नगर-मैदान में,
दो रोटी के लिए बने वह द्वार द्वार फरियादी रे।
भ्रष्टाचार-भूख-बेकारी दिन-दिन बढ़े सवाई,
अत्याचार विरोधी को सरकार कहे अन्यायी,
यह कैसा जनतन्त्र देश में, यह कैसी आज़ादी रे।
मैं तो बन्दे ! अग्नि-पन्थ का पन्थी दूर मुकामी,
मेरे संगी-साथी ये अन्तिम जुझार संग्रामी,
रोटी-आज़ादी-जनवाद हेतु जो करें मुनादी रे।
रचनाकाल : 30.4.1985