Last modified on 27 नवम्बर 2015, at 03:37

मैं नाहीं दधि खायौ / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मैया मैं नाहीं दधि खायौ, मोय झूठो दोष लगायौ॥ टेक॥
ये ग्वालन जुरि-मिलि के मैया, मोकू नाच नचाती हैं।
दे दे तारी हँसे और मोय बकनी बात सिखाती हैं॥
लीनौ पकरि मोय वन वन में जो कहुँ अकेलौ पायौ॥ मैया.
जो मैं आयो भाजि तो मैया ये मन में खिसियाती हैं।
तंग कराइबे मोकू ये झूठौ उरहानौ लाती हैं॥
इनके संग तनकहू मैंने ऊधम नहीं मचायौ॥ मैया.
जो तू मानें झूठ पूछ लैं मनसुख मेरौ गवाही है।
कब लूटौ मैंने दधि इनको झूठी बात बनाई है॥
हैं मदमाती ज्वानी में ये अपनों ऐब छिपायौ॥ मैया.
कैऊ दिना या चिमिचिमयाने मैया मोकूँ मारौ है।
पूछ ले याते मैया तू अरी मैंने कहा बिगारौ है।
‘घासीराम’ ने दंगल में रसिया ये कथिके गायौ॥ मैया.