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मैंने क्या किया
किस तरह मैंने, भला
यह जीवन जिया
कभी सागर को जाना
कभी गगन को पहचाना
कभी भूगर्भ ही बना मेरा ठिकाना
कभी पीड़ा से लड़ा मैं
कभी कष्टॊं से भिड़ा मैं
दुख साथ रहे बचपन से
रहा समक्ष मौत के खड़ा मैं
कभी रहा रचना का जोश
कभी घृणा में खो दिया होश
पर दिया सदा दोस्त का साथ
और किया प्रेम में विश्वास