तुम कहते हो
भूल जाओ इन दुखों को
किन्तु जब
हरे पत्तों के झुलसने का
दुःख हो
तीव्र आंधी में उजड़े नीड़ों के
बिखरने का दुःख हो
बुद्धदेव के शापित होने का
दुःख हो
विश्व-स्वर्ग के
बाढ़-ग्रस्त होने का
दुःख हो
बर्फीले हाथों में
आंवां भरने का
दुःख हो
तो मेरे मित्र
मैं किस-किस दुःख को भूलूँ
कि मैं भगवान नहीं हूँ
जो भूल जाऊं
मैं मनुष्य हूँ
जो कुछ भी नहीं भूलता।