मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी जिससे भिन्न सोचती हूँ भीड़ सा नहीं सोचना भीड़ के विरूद्ध होना नहीं होता है ज्यादातर भीड़ के भले के लिए होता है ताकि भीड़ को भेड़ की तरह नहीं हाँका जा सके यह दर्ज फिर भी हो कि भिन्न को प्रायः भीड़ ही मारती है।