तुम्हारा होना मायने रखता है
लेकिन तुम
होकर भी नहीं हो
कितने अव्यवस्थित
कितने बेतरतीब हो तुम
उलझे से अपने आप में
स्वयं के कैदी तुम
जबकि दुनिया तुम्हें स्वतन्त्र देखती है
उन्मुक्त सोचती है
अपने आपमें अनुपस्थित तुम
आत्मा में ख़ून में भाषा में ह्रदय में
अपना शहर बसाए हो
बेशक
ज़रूरतों ने परदेसी कर दिया तुम्हें
हाँ
मेरे प्रेम को तो अपने दिल से विदा नहीं किया होगा तुमने
टेबल पर बिखरे काग़ज़ों में
अपना ज़रूरी काग़ज़ नहीं मिलता जहाँ
मालूम है मुझे
खोया तो नहीं होगा तुमने
वो ख़त जो मैंने लिखा था
तुम अपने आपको खोजते हुए भी
कहाँ भटके कभी
तुमने तो कई राहगीरों को मंज़िलें दी हैं
रास्ता हो न तुम
भूले तो नहीं होगे न
तुमसे जुड़कर कईयों को
राह दी है
मैंने भी
मील का पत्थर बन
तुमसे बिना मिले
जुड़ी रही हूँ सदा तुमसे ही
जानती हूँ मैं
तुम्हारी मंज़िल नहीं मैं
हाँ, मगर
तुम्हारे सफ़र की साक्षी
संघर्ष की साथी
हमेशा रहूँगी
और
करती रहूँगी प्रेम
तुमसे ही
हमेशा के बाद तक