मैं वही हूँ जो कल था
मन्द गति से चलता हुआ
कुछ सोचता-विचारता हुआ
वही है घर-गृहस्थी का छोटा-मोटा जँजाल
वही है मौसम का सर्द-मिजाज़
ठिठुरता सबकुछ
वही हैं मित्र और रिश्तेदार और जलनेवाले
वही हैं दिशाएँ, आसमान वही
और शहर की रेलमपेल सड़क
वही हैं नज़ारे
और परेशानियों से छटपटाती ज़िन्दगी
वही भाव-बोध
वही विचारों और भावों का उठना-गिरना
कुछ नया नहीं है
सबकुछ वही है जो था
वही कोशिश कि कुछ नया रचा जाए
अपनी मौलिकता को कुछ और सँवारा जाए
अपनी पहचान बनाने की कोशिश निरन्तर
सबकुछ वही है
बदलते रहने की कोशिश भी वही है
लेकिन हर साल बदल जाता है कैलेण्डर
बदलती रहती है तारीख़ पर तारीख़
मैं नया कुछ भी नहीं कर पाता
एक उम्मीद-सी फिर भी लगी रहती है
एक चाहत लिए आगे ही बढ़ा जाता हूँ