मैं वृक्ष हूँ / विनय सिद्धार्थ

मैं वृक्ष हूँ
मुझमें भी जीवन है
बिल्कुल तुम्हारी तरह

मुझमें संवेदनाएँ भी हैं
मैं हँसता भी हूँ
रोता भी हूँ
और कभी-कभी तो

मदमस्त हवा के साथ
प्रसन्नचित होकर
नृत्य भी करता हूँ
कभी कभी वह शरारत करती है

थपेड़े मारती है
और बदले में
मैं भी
हाँ एक बात है

मैंने कभी किसी का
दिल नहीं दुखाया
कुछ न कुछ
लोगों को दिया है

कभी निराश नहीं लौटाया
कभी किसी को कुछ लकड़ियाँ
तो कभी शीतल छाया
और प्राण वायु देने के लिए ही तो

उत्पन्न हुआ हूँ
फिर भी लोग
मुझे नष्ट करने पर
क्यों तुले हुए हैं

हाँ मैं
निष्प्राण होकर भी
तुम्हारे काम आऊँगा
शायद अब से बेहतर।

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