मैं सेवा निवृत हो गया, पर सेवा जारी है!
पाँव थके, तो अब सर के बल चलने की बारी है!
पथ के बाग-बगीचे आँखें भर देते रंगों से,
महक लिपट जाती नागिन-सी, विरस हुये अंगों से,
रस में विष घोल कर पियूँ, यह मेरी लाचारी है!
पाँव थके, तो अब सर के बल चलने की बारी है!
जो चाहा मिल गया, और पाने की चाह नहीं है,
दूभर लेना सांस, मगर होंठों पर आह नहीं है,
बहुत सँभालूं बोझ, न सँभले, मन इतना भारी है!
पाँव थके, तो अब सर के बल चलने की बारी है!
मैं हूँ अठहत्तर का, यह विश्वास किसे होता है,
मैं सपने लिखता हूँ, जब सारा आलम सोता है,
जीत लिया जग, अब खुद से लड़ने की तैयारी है!
पाँव थके, तो अब सर के बल चलने की बारी है!