Last modified on 1 नवम्बर 2011, at 14:41

मैं हवा हूँ / पद्मजा शर्मा


थोड़ी-सी खिलखिलाहट
थोड़ी-सी ख़ुशबू
थोड़ी-सी नरमी थोड़ी-सी गर्मी
थोड़ी-सी तपन थोड़ी-सी चुभन
थोड़ी-सी चुप्पी थोड़ी-सी रात
थोड़े से अपने
थोड़े से सपने
हैं संग साथ

चलते-चलते चली जाती हूँ
बादलों से, रंगों से, सितारों से, चाँद से
बाथ भर मिल आती हूँ
तितलियों के पंखों को चुपके से छूकर
फूलों को टहनियों पर झूला झुलाती हूँ
और शाम पड़े धरती की शैया पर
सुला के भी मैं ही आती हूँ

सबको जीवन देती
हर जगह आती-जाती
किसी की पकड़ में मगर कहाँ आती हूँ
उसी की हो जाती हूँ
जहाँ जाती हूँ
मैं हवा हूँ।