♦ रचनाकार: अज्ञात
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मै बंजारो हरि नाम को,
आरे लेतो हरि जी को नाम
(१) गगन मंडल में घर तेरा,
आरे भवसागर मे दुकान
सौदागीर सौदा करी रया
मस्त लगी रे दुकान...
मै बंजारो...
(२) मन तुम्हारी ताकड़ी,
आरे तन है तेरो तीर
सुरत मुरत सी तोलणा
मन चाहे को मोल...
मै बंजारो...
(३) लुम लहेर नदिया बहे,
आरे बहे अगम अपार
धर्मी कर्मी रे पार हुई गया
पापी डूबे मझधार...
मै बंजारो...
(४) कहत कबीर धर्मराज से,
आरे साहेब सुण लेणा
सेन भगत जा की बिनती
राखो चरण आधार...
मै बंजारो...