मोती हार पिरोये हुए
दिन गुजरे हैं रोये हुए
नींद मुसाफिर को ही नहीं
रस्ते भी हैं सोये हुए
जश्न ए बहार में आ पहुंचे
ज़ख्म का चेहरा धोये हुए
उसको पाकर रहते हैं
अपने आप में खोये हुए
कितनी बरसातें गुजरीं
उससे मिलकर रोये हुए
मोती हार पिरोये हुए
दिन गुजरे हैं रोये हुए
नींद मुसाफिर को ही नहीं
रस्ते भी हैं सोये हुए
जश्न ए बहार में आ पहुंचे
ज़ख्म का चेहरा धोये हुए
उसको पाकर रहते हैं
अपने आप में खोये हुए
कितनी बरसातें गुजरीं
उससे मिलकर रोये हुए