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मोनालिसा-3 / सुमन केशरी

कितनी वीरान आँखें हैं तुम्हारी
मोनालिसा
जाने क्या खोजतीं देखतीं
जीवन का कोई छोर
या
अधूरी-कथा कोई
सूत जिसके उलझे पड़े हैं
यहाँ से वहाँ तक
न जाने कहाँ तक..