आब कहू! मोन केहन लगैये ?
दिन दुपहरिया आगू-पाछू
आँखिक आगू लाइट बरैये। आब कहू
जनता गेला जूनेठल श्रीमन्
मंगनीमे लीडर बनि गेलियै
लोटिया जनताके डूबि गेलनि
जखने अहाँ मिनिस्टर भेलियै
पैघ लोक केर पूर्जी पर
परमीषन भेंट करके दै छलियै
साधारण जनताकें दर्षन देब
अहाँ निकृष्ट बुझलियै
आब अहाँ छी हारल हीरो
बाट चलैत लोक आँखि मारैये। आब कहू
धन अरजन ले‘ घेंट कटै छी
तइयो हावा पास करैयै
चौराहा पर गप्प हँकै छी
घरमे मुसरी दण्ड घिचैये
अनकर भोजमे हाथ पैर तजि
खाइछी जेना पेट बखारी
सबसँ बेसी खाधुर गामक बिका
गेल तें लोटा थारी
बिनु नोतल दुहु हाथ भकोसल
ढोढ़ीक नीचा दरद करैये। आब कहू
बौरहवा शंकर केर कीरपा
चारि पुत्र के बनलौं बाप
तइ बेटा ले अहाँ महोदय
एक्कहु टा ने छोड़लौं पाप
कोनो जनक जौं बिना दामकें
इच्चा-ताना बेटा मंगलनि
आँखि-भौंह सब अंग टेढ़ भेल
किनकहु हाथ ने अहाँ लगलिअनि
सएह सुपात्र सुपुत्र अहाँकें
नितदिन साँझ आ‘ भोर हुरैये। आब कहू...