मेह होने पर
मोह अंकुराता है
धरती से
ग्रहस्थि से !
मोह
जन्मता है
अदृश्य
पीठ पीछे
इस लिए चल
अभी
सफ़र शेष है !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"
मेह होने पर
मोह अंकुराता है
धरती से
ग्रहस्थि से !
मोह
जन्मता है
अदृश्य
पीठ पीछे
इस लिए चल
अभी
सफ़र शेष है !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"