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मौजी बाबा / पतझड़ / श्रीउमेश

महिना भर सें देखी रहलोॅ छी मौजी बाबा के ढंग।
येॅ गामोॅ में खूब जमैलेॅ छेॅ वें ठग-विद्या के रंग॥
माथा पर छै जटा-जूट, देहोॅ में भसम रमैलेॅ छै।
धुनी जरै छै सगरो दिन, नैं चिलम कभीं ठंढैलोॅ छै।
केकरै गंड़ा केकरै ताविज, केकरे भूत उतारै छै॥
लोगें दै छेॅ पंसा-कौड़ी जौनें जत्तेॅ धारै छै॥
मौगी केॅ, बच्चा तक दैके, मंतर-जंतर के विस्तार।
मौजी बाबा यही तरह सें गामोॅ के करलक उद्धार॥