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मौत और उसके बाद / विष्णु खरे

 विष्णु खरे की पहली कविता का एक अंश। यह कविता कवि द्वारा " विष्णु कान्त खरे ' शैलेश ' नाम से लिखी गई थी

मुझे शायद याद करें वे टिमटिमाते तारे
रातों में जिन्हें देखता था मैं
मुझे न पाकर रोएँगें मेरे पागल विचार
अनजाने ही जिन्हें था लेखता मैं
बरखा मुझे न देखकर कहे
" क्या चल दिया वह ? "

और आवारा बादलों का टुकड़ा न रहे
पूछ बैठे " नहीं रहा क्या वह
एक ही, बस एक ही पागल जो
हमें था देखता और मुस्कुराया ? "

मेरी चिता पर नहीं होंगे किसी के
अश्रु, स्मृति में चढ़ाए फूल
बाद दो दिन के दिखावे के, रोने के,
सभी जाएँगे मुझको भूल
क्या हुआ जो सिरफिरा इक मर गया ?
जगत के आनन्द में कम क्या कर गया ।