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मौन भी कैसे रहूँ / त्रिलोचन

मौन भी कैसे रहूँ

कहूँ क्या कहूँ

तीखे तनाव से टूटने वाले


चाहे गड़ी हों

कई अनियाँ

अभी और भी हैं शर छूटने वाले


पीसने को अनुताप की भीड़ है

दुख भी हैं

सिर कूटने वाले


एक से

तू घबरा गया है

यहाँ एक से एक हैं लूटने वाले ।