आज भी मौजूद है
उजड़े भोजरासर की गुवाड़ में
जसनाथ दादा का थान
साळनाथ जी की समाधि
जाळ का बूढ़ा दरख्त
मगर गाँव नहीं है।
सुनसान थेहड़ में
दर्शन दुर्लभ है
आदमजात के
फि र कौन करे
साँझ-सवेरे
मंदिर में आरती
कौन भरे
आठम का भोग
कौन लगाए
पूनम का जागरण
कौन नाचे
दधकते अंगारों पर।
देवता मौन हैं
किसे सुनाएं
अपनी पीड़ा।