♦ रचनाकार: अज्ञात
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म्हारा भरपुर जोगी,
तुमन जगाया जुग जागजो
(१) सोई.सोई प्राणी क्या करे,
निगुरी आव घणी निंद
जम सिराणा आई हो गया
आरे उबीयाँ दुई.दुई बीर...
तुमन जगाया...
(२) चुन चुनायाँ देव ढलई गया,
आरे ईट गिरी लग चार
फुल फुलियाँ रे हम न देखीयाँ
देख्या धरणी का माय...
तुमन जगाया...
(३) एक फुल ऐसा फुलिया,
आरे बाति मिल नही तेल
नव खण्ड उजीयारा हुई हो रयाँ
देखो हरी जी को खेल...
तुमन जगाया...