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म्हारी कविता 2 / रामस्वरूप किसान

म्हारी प्रीत,
थारै चरणां में
सिर टेक्यां खड़ी है
म्हारी कविता

थूं कैवै-
म्हनैं कविता में बांधौ
जद कै
थारी बांथां में
बंधी खड़ी है
म्हारी कविता।