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म्हारै खातर कविता / गंगासागर शर्मा

जद ई आवै
म्हारै मन में कोई
नवो विचार
तो वो
हाथोहाथ ई कविता में
बदळ जावै।
 
म्हारै खातर स्यात
सबद कोई मायनो कोनीं राखै।
म्हैं तो भाव/संवेदना रो पुजारी
फगत सबदां सूं सज्योड़ी कविता में
वा मौलिकता/सच्चाई कठै?
 
सबद चावै मिलै कै नीं मिलै
म्हारै कैवणै रो अरथ
पूगणो जरूरी है।