Last modified on 14 दिसम्बर 2013, at 03:34

म्हारै गांव / किरण राजपुरोहित ‘नितिला’

रात्यूं जागता स्हैरा मांय
आखी रात
बावळो-सो घूमै अंधारो
जाग्यां सोधतो
घड़ी दोय घड़ी
लेवण नींद।
अठीनै देखो-
म्हारै गांव
जेठ रै आकरै तावड़ै मांय ई
छियां नैं लाधै ठौड़
खेजड़ली रै हेठै
वा तिरपत लेवै नींद।