म्हारौ गांव / संजय आचार्य वरुण

कितरो सोवणौ
अर मन भावणौ लागै
भोरान भोर
माँ रो आंगण बुहारणौ
अर भाभीसा रौ
तुळसी सींचते सींचते
मधरै मधरै सुर में
भजन गावणौ।
घणौ आछौ लागै
सानी खावतां
बळधां रै गळै री
नान्ही नान्ही घंट्यां रौ बाजणौ
अर दुहारी खातर त्यार
गयां रौ रंभावणौ
कितरी मीठी लागै
बकर्यां अर मेमनां री
मिमियाती बोली
अर पिणघट माथै
हथाई करती
छोर्यां री हंसी
अर बां रै
मूण्डै सू रचीजती
जीवन री अनलिखी काण्यां
गाव री इण भोर ने
भोर रै चितराम ने देखौ
देखौ अर जीवौ।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.