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यकीन / कुमार राहुल

यकीन
किसी ग़ज़ाले की
सिसकियों में ज़ब्त सदा है
दिन के दरीचे पर
शब की आँखें
इश्क की किताब का
फटा हुआ पन्ना है कोई!

दंगों में दफ्न
वस्ल की आरज़ू
तालों की दुनिया में
अकेली चाभी
फरहाद के हाथों का
तेशा है यकीन!


यकीन
कैपिटलिस्ट महबूबा कि बाँहों में
एक कम्युनिस्ट का मरता हुआ प्यार है!