राह चलते
देखता हूँ — आह
कितने लोग छलते,
बोलते — ज्यों ले रहे हों थाह !
और गहरी मार पर
और भारी वाह !
जी रहे हैं लोग
जैसे स्वप्न जलते !
राह चलते
देखता हूँ — आह
कितने लोग छलते,
बोलते — ज्यों ले रहे हों थाह !
और गहरी मार पर
और भारी वाह !
जी रहे हैं लोग
जैसे स्वप्न जलते !