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यदि चुने हों शब्द / नंदकिशोर आचार्य


जोड़-जोड़ कर
एक-एक ईंट
ज़रूरत के मुताबिक
लोहा, पत्थर, लकड़ी भी
रच-पच कर बनाया है इसे।

गोखे-झरोखे सब हैं
दरवाजे़ भी
कि आ-जा सकें वे
जिन्हें यहाँ रहना था
यानी तुम।

आते भी हो
पर देख-छू कर चले जाते हो
और यह
तुम्हारी खिलखिलाहट से जिसे गुँजार
होना था
मक्बरे-सा चुप है।

सोचो,
यदि यह मक्बरा हो भी तो
किस का ?
और ईंटों की जगह
चुनें हों यदि शब्द !

(1981)