यहाँ भी
आदमी
औरतों का
शील भंग करते हैं
देह की डाल का
झूला झूलते हैं,
अंग
और अनंग की
लीला में लीन
एक ही अकूल में
पैरते-डूबते
एक हुए
रीझते-सीझते हैं
रचनाकाल: १४-०६-१९७६, मद्रास
यहाँ भी
आदमी
औरतों का
शील भंग करते हैं
देह की डाल का
झूला झूलते हैं,
अंग
और अनंग की
लीला में लीन
एक ही अकूल में
पैरते-डूबते
एक हुए
रीझते-सीझते हैं
रचनाकाल: १४-०६-१९७६, मद्रास