यहाँ भी
लोग और लोग हैं
आम और ख़ास,
आदमी की तरह के आदमी
एक-दूसरे से
अलग-थलग,
रहते हुए भी
हाथ की तरह पास-पास,
धुनते हुए
अपनी-अपनी कपास
रचनाकाल: १४-०७-१९७६, मद्रास
यहाँ भी
लोग और लोग हैं
आम और ख़ास,
आदमी की तरह के आदमी
एक-दूसरे से
अलग-थलग,
रहते हुए भी
हाथ की तरह पास-पास,
धुनते हुए
अपनी-अपनी कपास
रचनाकाल: १४-०७-१९७६, मद्रास