कितना असहाय था मैं
अन्देशों से घिरा, काँपता हुआ प्रतिपल
जब सब कुछ सुरक्षित था
और हवाएँ हर तरह अनुकूल।
अब सभी कुछ घनघोर झँझावत में है-
मैं कितना बेफिक्र !
यही है क्या प्यार
समुद्री तूफानों के बीच
लहरों पर उछलती
एक टूटी नाव पर
बेफिक्र करती हुई
स्मृति यह ?
(1987)