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यह उपहार ले लो / आराधना शुक्ला

रंग अपने सब तुम्हें मैं सौंपती हूँ
हो सके तो आज यह उपहार ले लो

रंग है रक्तिम समर्पण का धवल रंग त्याग का है
पीत है संवेदना का, केसरी अनुराग का है
प्रेम का अक्षय असीमित कोष है यह
भावपूरित यह अमिट आगार ले लो

जागती पथराई आँखें, आज सोना चाहती हैं
अंजुरी में अश्रु के कुछ बीज बोना चाहती हैं
सौंप दो झूठे सपन नयनों को मेरे
और मेरे स्वप्न का संसार ले लो

परिधि से साँसों की होकर मुक्त जीवन, खो रहा है
बिन ‘हृदय’ के स्पन्दनों का मौन हो स्वर, रो रहा है
पल रहा उर में अपरिमित नेह प्रतिपल
इस अभागे नेह का विस्तार ले लो