यह एक राग है
जिस ने पेड़ों में जगायी है आग
तभी तो हर पेड़
कोई लपट है जैसे
लपट:
जिस के सीने में छिपी है गहरे
वह हरी, ठंडी आग !
इस लपट से लिपटने का राग है हेमन्त
जिसे जंगल गाता है
आँचल में हिमकमलों-सा निस्पन्द
सो रहा है वसन्त जो
सिहरता है, जाग जाता है।
(1977)