प्रभु जी !
यह कैसी उजियाली
सूरज का चेहरा पीला है
पुतली काली-काली
चारों ओर घना सन्नाटा
ख़ुश्क अँधेरा नाटा-नाटा
शहर आदमी में बैठा है
और आदमी ख़ाली
सड़क सरीखी इच्छाओं पर
दौड़ रही काग़ज़ की मोटर
दीवारों पर चिपक रही है
मीठी-मीठी ग़ाली
प्रभु जी !
यह कैसी उजियाली
सूरज का चेहरा पीला है
पुतली काली-काली
चारों ओर घना सन्नाटा
ख़ुश्क अँधेरा नाटा-नाटा
शहर आदमी में बैठा है
और आदमी ख़ाली
सड़क सरीखी इच्छाओं पर
दौड़ रही काग़ज़ की मोटर
दीवारों पर चिपक रही है
मीठी-मीठी ग़ाली