घूमनी-सी आ रही सुनकर
यह चरावर छोड़िए, श्रीमान !
गहगहा रस इस गण्डेरी का
तनिक हम जो ले रहे चुपचाप ।
ठाँठ या फिर खँख कह-कहकर
बीच में मत टोकियेगा आप ।
हमें टिटिहारोर से नफ़रत
लवे लोहित, जल रहे हैं कान ।
यह चरावर छोड़िए, श्रीमान !
घड़ी-भर को सहज होने के
रास्ते सारे पड़े हैं बन्द ।
कहाँ ये संयोग बनते हैं
सिंघाड़ों का लीजिए आनन्द ।
बात का यों पीट करके डाँग
क्यों हमारी खा रहे हैं जान ।
यह चरावर छोड़िए, श्रीमान !
ठोप गिरती डोल में टपटप
ज़रा सुनने दें सुगम संगीत ।
निष्कलुष यह राग मौसम का
क्यों करे नाहक तुम्हें भयभीत ।
ठिर गए हैं तो जलाएँ आँच
तमस तंकन पर न झाड़ें ज्ञान !
यह चरावर छोड़िए, श्रीमान !