सुनो रुको
देखो इस ओर
यह स्वर है जीवन की गाड़ी के
हहरा कर चलते जाने का
यह देखो यह
उड़ती धूल
यह छिपकर
पदचापों का
अपने को ही
ढाँक-मूँदकर
इतराते छलते जाने का
यह टहनी पर पत्तों के
आने-जाने का
सतत प्रवाह
और उगे एक दिन
फिर आने को
रह-रह कर झरते जाने का।