यह विचार की पगडंडी
यह सोचों का लंगड़ा रथ
यह घुमाव से लहरदार
नाहक ही होता लम्बा पथ
सहयात्री ये कब से साथ
हर बार मगर ले
रूप नया
कितनी बार करो स्वागत
कितनी बार नया जान
इस स्वांग भरे अनजाने का।
यह विचार की पगडंडी
यह सोचों का लंगड़ा रथ
यह घुमाव से लहरदार
नाहक ही होता लम्बा पथ
सहयात्री ये कब से साथ
हर बार मगर ले
रूप नया
कितनी बार करो स्वागत
कितनी बार नया जान
इस स्वांग भरे अनजाने का।