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यह बेरुख़ी का सिलसिला, अच्छा लगा / देवी नांगरानी

यह बेरुख़ी का सिलसिला, अच्छा लगा
उसने मुझे धोखा दिया, अच्छा लगा

तन्हा रही हूँ मैं जहाँ की भीड़ में
इक पास था मेरा ख़ुदा, अच्छा लगा

आता है मुझको भी मनाने का हुनर
इक दोस्त जब दुश्मन बना, अच्छा लगा

उसकी ख़ुशामद से परेशां थी बहुत
वो छोड़ कर मुझको गया, अच्छा लगा

इक सोच ने ‘देवी’ मुझे जकड़ा बहुत
जब उससे छुटकारा मिला, अच्छा लगा