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यह भी सच है / कुमार रवींद्र

यह भी सच है
सबका आँगन एक नहीं है
 
अलग-अलग हैं
मंदिर-मस्जिद के उजियारे
'सबका मालिक एक' -
हुए उसके बँटवारे
 
मुल्ला-पंडित
दोनों की मति नेक नहीं है
 
सूरज बँटा
जोत भी उसकी बड़ी पुरानी
खारी हुआ
ताल-पोखर-नदियों का पानी
 
सीधी-सादी
भजन-नात की टेक नहीं है
 
नया मर्ज़ है
चौराहों पर निबटारे का
लोग हवाला देते हैं
टूटे तारे का
 
घना अँधेरा
कहीं जोत की रेख नहीं है