यह भी सच है
सबका आँगन एक नहीं है
अलग-अलग हैं
मंदिर-मस्जिद के उजियारे
'सबका मालिक एक' -
हुए उसके बँटवारे
मुल्ला-पंडित
दोनों की मति नेक नहीं है
सूरज बँटा
जोत भी उसकी बड़ी पुरानी
खारी हुआ
ताल-पोखर-नदियों का पानी
सीधी-सादी
भजन-नात की टेक नहीं है
नया मर्ज़ है
चौराहों पर निबटारे का
लोग हवाला देते हैं
टूटे तारे का
घना अँधेरा
कहीं जोत की रेख नहीं है