सुनो महाशय !
पता आपको
यह मायानगरी है किसकी
जो भी आता यहाँ
वही बौना हो जाता
रह जाता है नहीं
किसी से उसका नाता
ऊँची जो मीनार
बनी कल
उसकी नींव अभी से खिसकी
आसमान से
उतर रहा जो उड़नखटोला
लौटा लेकर सिंधु-पार से
नूतन चोला
अँधों की
जायदाद हुई यह
बतलाओ तो किस वारिस की
हुए अपाहिज
जो थे पहले अच्छे-खासे
प्रश्नों से सब जूझ रहे हैं
हैं वे प्यासे
पतितपावनी
नदी जहाँ थी
अब तो झील वहाँ है विष की