वह बोल रहा हूँ
जो लगातार बोलना चाहता हूँ
जिसकी गूँज होती है, हमारे भीतर
वही है, यह मेरा स्वर।
बहुत दिनों से रोया नहीं हूँ, मैं आदमी हूँ
जब मैंने कहा आदमी हूँ
फिर से पूरे मन से कहा
मेरे हाथ, गुर्दे, उंगलियाँ
मेरे नाख़ून, मेरे आँसू, मेरा मुँह
सब आदमियों की तरह थे
चेहरा शायद थोड़ा बदला हुआ था।
बहुत सारे हाथ थे
वे मुझे बुला रहे थे
बहुत सारे लोग थे
मेरे साथ, मेरे आगे-पीछे
जिन्हें मैंने भुला दिया था
वे चल रहे थे, हँस-बोल रहे थे।
बहुत सारे पत्र, क़िताबें और नसीहतें थीं
सब इन्तज़ार में थीं, ये सब मेरे लिए थीं
ढेर सारे बोले गए शब्द, बोल रहे थे
यह मनुष्यों की आवाज़ें थीं
मैंने कहा मनुष्य, मनुष्य, मनुष्य...
यह मेरा स्वर है
मैं आ रहा हूँ।