मोड़ इसमें कई यह
लम्बा सफ़र है।।
देह डूबी हुई
धानी धान सी
जीन सूखी
रची
बासी पान-सी।
एक कोने में छिपा
दुर्दिन का डर है।।
आलता रंग-सी
सुए की चोंच-सी
ऊँचे-नीचे
दिनों की
यह मोंच-सी।
छाँह के संबंध में भी
धूप-फर है।।
आँख ओठों बीच
बैठी सदी-सी,
ज़िन्दगी है
बाल खोले
नदी-सी।
जीने-मरने को कहीं
रस्ते का घर है।