Last modified on 31 अक्टूबर 2011, at 12:04

यह विश्वास / भारत यायावर

यह विश्वास
यह आस्था
यह विजय
कोई अकेला नहीं
कुछ भी नहीं मिलता एकांत में
जूझना पड़ता है
सुबह से शाम तक
तब मिलती है विजय की निश्चिंत नींद

हताशा और पराजय में भी
सफल होने का भाव
बढ़ाता जाता है क़दमों को
आस्था को प्रबल करता
और विश्वास ज़िन्दा रहता है
घनघोर अन्धेरे में भी
कि फिर सुबह होगी
सबका सम्बन्ध है जीवन से

शहर में घटती हैं दहशत भरी घटनाएँ हैरतअंगेज़
कभी हत्यारों की गोलियाँ
कभी लुटेरों की टोलियाँ
चोरों का हुजूम
अपहरणकर्ताओं और बलात्कारियों से अटे पड़े शहर में
मानो समाज का वीभत्स और भयावह चेहरा
अपने ख़ौफ़नाक अन्दाज़ में
बनाने की कोशिश करता है हमें कायर

मनुष्यता को रौंदते हुए
लहुलूहान करते हुए भी
हमारी आस्था को
आत्म-विश्वास को
हमारे विजयीभाव के उत्साह को रौंद नहीं पाते

कभी बुद्ध, कभी कबीर, कभी गाँधी
अवतरित होते हैं हमारे अन्दर
और सदियों तक जीवित रहते हैं
आस्था, विश्वास और मनुष्यता की विजय के रूप में